किसानो को लखपति बना देगी सोयाबीन की उन्नत किस्मे, जाने खेती करने का सही तरीका

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किसानो को लखपति बना देगी सोयाबीन की उन्नत किस्मे, जाने खेती करने का सही तरीका

किसानो को लखपति बना देगी सोयाबीन की उन्नत किस्मे, जाने खेती करने का सही तरीका भारत में दालों का एक विशेष स्थान है, और इस कड़ी में सोयाबीन की खेती भी महत्वपूर्ण है। सोयाबीन, जिसे प्रोटीन का पावरहाउस कहा जाता है, न सिर्फ हमारे भोजन के स्वाद को बढ़ाता है बल्कि किसान भाइयों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत भी बन सकता है। तो आज की खबर में हम गहराई से जानेंगे कि सोयाबीन की खेती कैसे की जाती है (Soyabin Ki Kheti Kaise Ki Jaati Hai) और इससे किसान भाइयों को क्या फायदे हो सकते हैं।

सोयाबीन की खासियत (Soybean Ki Khasiyat)

सोयाबीन की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह दलहनी फसल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती है। साथ ही, सोयाबीन वायुमंडल से नाइट्रोजन को मिट्टी में जमा करके मिट्टी के स्वास्थ्य को भी सुधारता है। इसकी जड़ों में गांठें बन जाती हैं, जिनमें राइजोबियम नामक बैक्टीरिया रहते हैं। ये बैक्टीरिया वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर जमीन को उपजाऊ बनाते हैं। तो, अगले सीजन में आप अच्छी पैदावार के साथ दूसरी फसल भी उगा सकते हैं।

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सोयाबीन की खेती का सही समय (Soybean Ki Kheti Ka Sahi Samay)

सोयाबीन की खेती के लिए गर्म और उमस भरा मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसकी बुवाई आमतौर पर जून से जुलाई के महीनों के बीच की जाती है। मानसून की शुरुआत को इसके लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है, क्योंकि अंकुरण के लिए हल्की बारिश जरूरी होती है। हालांकि, ध्यान रखें कि सोयाबीन की फसल के लिए ज्यादा जलभराव हानिकारक होता है, इसलिए खेत में अच्छी जल निकास व्यवस्था का होना जरूरी है।

सोयाबीन की उन्नत किस्में (Soybean Ki Unnat Kismen)

अच्छी पैदावार के लिए सोयाबीन की उन्नत किस्मों का चुनाव बहुत जरूरी है. अपने इलाके की जलवायु और मिट्टी के हिसाब से बीजों का चुनाव करें। कृषि विभाग या शोध संस्थानों से सलाह करने के बाद ही वही बीज खरीदें जो आपके खेत के लिए सबसे उपयुक्त हों। कुछ लोकप्रिय उन्नत किस्मों में शामिल हैं – जेएएस 335, आरकेएसवाई (सोयाबीन)-14 और मडार सोयाबीन 541 आदि।

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इस तरह करें सोयाबीन की बुवाई (Is Tarah Karein Soybean Ki Buवाई)

सोयाबीन की खेती में बीजों की मात्रा मिट्टी की उर्वरता और किस्म पर निर्भर करती है। आमतौर पर प्रति हेक्टेयर 70 से 80 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई करते समय कतारों के बीच 30 से 45 सेमी और पौधों के बीच 5 से 7 सेमी का फासला रखें।

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