रक्षाबंधन पर्व : पावन पर्व पर छाया भद्रा का साया,कब बांधे राखी ,कब है शुभ समय ?

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रक्षाबंधन पर्व। रक्षाबंधन का पर्व गुरुवार को मनाया जाएगा। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का साया है। लोगों में इसे लेकर असमंजस है कि आखिर कब रक्षासूत्र बांधें। काशी, उज्जैन और देशभर के प्रमुख विद्वानों से चर्चा की। ज्यादातर ने कहा- रात 8.52 बजे बाद भद्रा रहित काल में ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाना चाहिए। कुछ विद्वानों ने कहा- भद्रा पाताल लोक की, इसलिए असर नहीं है। संस्कृत कॉलेज के डॉ. विनायक पांडेय और खजराना गणेश मंदिर के पुजारी ने कहा- भद्रा रहित काल में ही पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत है।

पंडित अशोक भट्‌ट ने कहा- जब हमारे पास उपयुक्त समय है तो हम भद्राकाल में रक्षासूत्र क्यों बांधें। आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक ने कहा धर्मशास्त्रों की स्पष्ट मान्यता है कि श्रावणी अर्थात रक्षाबंधन व फाल्गुनी होलिका दहन को भद्राकाल में वर्जित किया गया है। भद्रा रहित काल रात 8.52 के बाद ही रक्षाबंधन पर्व मनाया जाना चाहिए। जिनको अति आवश्यक है तो वे भद्रा का मुख छोड़कर भद्रा के पुच्छकाल (शाम 5.18 से 6.18) में रक्षासूत्र बांध सकते हैं।

भद्रा के बाद रक्षाबंधन मनाना सर्वश्रेष्ठ रहेगा

काशी के सभी वरिष्ठ ज्योतिषियों से चर्चा हुई। निर्णय लिया गया कि धर्मसिंधु और निर्णय सिंधु में स्पष्ट उल्लेख है कि भद्रा रहित काल में रक्षाबंधन मनाना चाहिए, इसलिए भद्रा के बाद रक्षाबंधन सर्वश्रेष्ठ है।
– प्रो. विनयकुमार पांडे, ज्योतिष विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

भद्रा के बाद ही मनाया जाएगा, यही शास्त्र सम्मत

देशभर से निकलने वाले पंचांग के अलावा काशी, उज्जैन सहित देशभर के प्रमुख ज्योतिषी एक मत हैं कि भद्रा में रक्षाबंधन वर्जित है। इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व भद्रा के बाद ही मनाया जाएगा। शास्त्र सम्मत भी यही है।
– पं. आनंदशंकर व्यास, पंचांगकर्ता, उज्जैन

भद्रा का वास पाताल लोक में, उतना असर नहीं

भद्रा रहित काल में ही रक्षासूत्र बांधना शास्त्र सम्मत है। हालांकि जिनको जरूरी है, वे अलग-अलग मुहूर्त में पर्व मना सकते हैं, क्योंकि भद्रा का वास पाताल लोक में है। वैसे भद्रारहित काल में पर्व मनाना श्रेष्ठ है।

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