UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा

UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा पुरुषवादी समाज में पति की मौत के बाद जब एक औरत का अस्तित्व खत्म समझा जाता है ऐसे वक्त में प्रियंका शर्मा ने अपनी तकदीर खुद लिखने का फैसला किया। आज उनकी सफलता के चर्चे पूरे देश में हो रही हैबांका जिले के अमरपुर प्रखंड के खरदौरी गांव की प्रियंका शर्मा ने अपने हौसले और जुनून के बल पर आत्मनिर्भर बनकर दिखाया है। प्रियंका बिहार के गरीब तबके से आने वाली महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी है। पति की मौत के बाद जब एक औरत का अस्तित्व खत्म समझा जाता है, ऐसे वक्त में प्रियंका ने अपनी तकदीर खुद लिखने का फैसला किया और सफलता पाकर समाज के पुरुषवादी मानसिकता को करारा जवाब दिया है।
अपने दोनों बेटे आनंद राज और निपुण राज के भविष्य संवारने के लिए दिल्ली में ही चाय की दुकान खोल ली
UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा उत्तर प्रदेश रोडवेज में गाजियाबाद के कौशांबी बस डिपो में पहली महिला सरकारी बस चालक के रूप में ख्याति अर्जित करने वाली प्रियंका दो बच्चों की मां भी है। प्रियंका की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय भीखनपुर व मध्य विद्यालय मेढ़ियानाथ में हुई। वर्ष 2002 में उसकी शादी भागलपुर जिले के नवगछिया थाना क्षेत्र के तेतरी गांव के राजीव शर्मा से हुई थी। राजीव दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते थे। प्रियंका भी पति के साथ रहती थी। फिर दो बच्चे हुए। पति को शराब की लत थी, जिसके कारण उनकी दोनों किडनी खराब हो गई। वर्ष 2016 में राजीव की मौत के बाद प्रियंका पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
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UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा इस मुश्किल समय में जब प्रियंका को आर्थिक सहायता की जरूरत थी तो उन्हें ससुराल की जमीन भी नसीब नहीं हुई। फिर भी उन्होंने हालातों के सामने घुटने नहीं टेके और अपने दोनों बेटे आनंद राज और निपुण राज के भविष्य संवारने के लिए दिल्ली में ही चाय की दुकान खोल ली। कुछ दिनों बाद उन्हें ट्रक में बतौर हेल्पर का काम मिला, तो वह एक बार भी नहीं झिझकी। लगभग दो वर्ष कड़ी मेहनत के बाद सितंबर 2022 में हेल्पर से ट्रक चालक बन गई।
प्रियंका ने पति की मौत के बाद ट्रक भी चलाया
UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा प्रियंका की मां वीणा देवी ने बताया कि जब उन्हें जानकारी मिली की बेटी ट्रक चालक बन गई है, तो परिवार के सभी सदस्यों ने विरोध किया। प्रियंका पर काम छोड़ने का दबाव बनाया गया, लेकिन वह नहीं मानी। प्रियंका ने अपने दोनों बच्चों का भागलपुर के एक निजी स्कूल में एडमिशन करवाया। दोनों बेटे भागलपुर में हॉस्टल में रहते हैं। प्रियंका ने इसके बाद भी अपनी मेहनत जारी रखी।

प्रियंका बच्चपन से थी कर्मठ
UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा ठीक दो वर्ष पूर्व साल 2020 में यूपी रोडवेज में बस चालक की बहाली निकली थी, जिसमें प्रियंका ने बाजी मार ली। ट्रेनिंग पूरा करने के बाद वर्तमान में प्रियंका गाजियाबाद के कौशांबी बस डिपो से मेरठ, बरेली, ऋषिकेश, देहरादून सहित अन्य शहरों में बस चलाकर जाती है। प्रियंका की बचपन की सहेली खुशबू, कंचन व पूजा ने बताया कि प्रियंका बचपन से ही जुझारू रही है। मेढ़ियानाथ स्कूल जाने के क्रम में रास्ते में विलासी नदी पड़ती है। प्रियंका बारिश के दिनों में नदी में अपनी सहेलियों को हिम्मत देकर नदी पार कराती थी।
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ट्रेनिंग पूरा करने के बाद वर्तमान में प्रियंका गाजियाबाद के कौशांबी बस डिपो से मेरठ, बरेली, ऋषिकेश, देहरादून सहित अन्य शहरों में बस चलाकर जाती है
UP की पहली महिला सरकारी बस चालक बनी चाय की दुकान से करती थी अपना गुजरा प्रियंका की मां ने बताया कि उन्हें प्रियंका समेत तीन बच्चे हैं। पुत्र रेलवे में सासाराम में पदस्थापित है। वहीं, दूसरा पुत्र नीलकमल शर्मा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पढ़ाई कर रहा है। स्कूल में ठंड की छुट्टी है, तो प्रियंका के दोनों बेटे ननिहाल खरदौरी में ही है। बड़ा बेटा आनंद राज (12 वर्ष) चौथी कक्षा एवं छोटा पुत्र निपुण राज (10 वर्ष) तीसरी कक्षा में पढ़ाई करता है। ज्ञात हो कि इसी प्रखंड की कुमरखाल की रहनेवाली प्रीति कुमारी बिहार की पहली रेल चालक बनी है। प्रीति की शादी गोड्डा जिले में हुई है।

UPSRTC में ड्राइवर की नौकरी
यूपी सरकार में नौकरी पाने के बाद प्रियंका बेहद खुश नजर आ रही हैं. हालांकि प्रियंका के बस ड्राइवर बनने की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. शराब के लत के चलते उनके पति की मौत हो गई थी. पति के मौत के बाद दो बच्चों की जिम्मेदारी प्रियंका के कंधों पर आ गई.
घर चलने के लिए प्रियंका ने सबसे पहले चाय की दूकान खोली. लेकिन उससे गुजारा नहीं हो पा रहा था. काफी परेशान होने के बाद प्रियंका ने ट्रक चलाना सीखा. पहले हेल्पर के तौर पर काम किया. फिर धीरे-धीरे वो ट्रक ड्राईवर बन गईं. ट्रक लेकर कभी बिहार, तो कभी बंगाल तो कभी महाराष्ट्र जाने लगीं.
बच्चों को हॉस्टल में
ट्रक ड्राइवर बनने के बाद प्रियंका बच्चों को समय नहीं दे पा रही थीं. बच्चों को हॉस्टल में डाल दिया. साल में दो बार ही बच्चों से मिल पाती हैं. लेकिन बच्चो को पढ़ाने के लिए रात दिन एक कर दी है. लेकिन अब रोडवेज बस ड्राईवर बन कर काफी खुश है.