किसानो भाइयो को करोड़पति बना देगी गेंहू की ये 4 उन्नत किस्मे,100 क्विंटल से अधिक पैदावार की ग्यारंटी, देखे पूरी जानकारी

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किसानो भाइयो को करोड़पति बना देगी गेंहू की ये 4 उन्नत किस्मे,100 क्विंटल से अधिक पैदावार की ग्यारंटी, देखे पूरी जानकारी

किसानो भाइयो को करोड़पति बना देगी गेंहू की ये 4 उन्नत किस्मे,100 क्विंटल से अधिक पैदावार की ग्यारंटी, देखे पूरी जानकारी। उच्च गेहूं की उपज देने वाली किस्में किसानों को मालामाल कर सकती हैं. वैसे तो 100 क्विंटल से ज्यादा की पैदावार देने वाली किस्में मौजूद हैं, लेकिन आज हम आपको 4 ऐसी गेहूं की किस्मों के बारे में बताएंगे जो 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से ज्यादा उपज देती हैं और जल्दी पकने वाली भी हैं. इन किस्मों को लगाकर भारत के उन सभी राज्यों में गेहूं का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है जहां गेहूं की खेती की जाती है. आइए, अब इन गेहूं की किस्मों की खासियतों को विस्तार से जानते हैं:

HD 4728 गेहूं की किस्म

यह किस्म 125-130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. पूसा मलावी के नाम से भी जानी जाने वाली एचडी 4728 गेहूं की कुल उपज 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जमीन की उपजाऊ शक्ति के आधार पर एचडी 4728 गेहूं की खेती भारत के सभी राज्यों में की जा सकती है. इसकी सिंचाई 3 से 4 बार करनी पड़ती है.

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श्री राम 11 गेहूं की किस्म

श्रीराम फर्टिलाइजर्स एंड कैमिकल्स के विश्व प्रसिद्ध गेहूं वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह किस्म देर से बोने के लिए उपयुक्त है. श्रीराम 11 लगभग 3 महीने में पककर तैयार हो जाती है. मध्य प्रदेश के किसानों के अनुसार इस गेहूं के दाने चमकदार होते हैं. श्रीराम सुपर 111 एक एकड़ में 22 क्विंटल गेहूं का उत्पादन देती है. (ध्यान दें कि एकड़ और हेक्टेयर दोनों ही क्षेत्रफल मापन की इकाइयां हैं. एक हेक्टेयर लगभग 2.47 एकड़ के बराबर होता है.)

GW 322 गेहूं की किस्म

यह किस्म मुख्य रूप से भारत के मध्य भाग यानी मध्य प्रदेश राज्य में उगाई जाती है और लगभग 4 महीने में पककर तैयार हो जाती है. गेहूं की GW 322 किस्म को भारत के अन्य राज्यों में भी उगाया जा सकता है. इसकी सिंचाई 3 से 4 बार करनी पड़ती है.

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पूसा तेजस गेहूं की किस्म

यह किस्म 2019 से खेतों में उगाई जा रही है. जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के प्रयोग में एक हेक्टेयर में पूसा तेजस गेहूं के 70 क्विंटल उत्पादन के बाद इसे किसानों को दिया गया था. यह गेहूं की किस्म 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है.

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