Poppy Cultivation अफीम की खेती के लिए क्यों लेना पड़ता है सरकारी लाइसेंस, कौन कर सकता है खेती? जानिए सम्पूर्ण जानकारी!

Poppy Cultivation मध्य प्रदेश में अफीम की खेती करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। इससे मंदसौर के किसानों को फायदा होगा, क्योंकि सरकार ने अफीम के पद से जुड़े किसानों को लाइसेंस देने की अधिसूचना जारी कर दी है. अफीम फसल वर्ष 1 अक्टूबर 2021 से 30 सितम्बर 2022 के दौरान अफीम की खेती के लिए लाइसेंस की स्वीकृति के लिए अधिसूचना जारी की गई है।
केंद्र की इस मंजूरी से अफीम पोस्त की खेती करने वाले किसानों को फायदा होगा. अधिसूचना में यह भी लिखा गया था कि ऐसे किसान, जो पहले कभी इस पेशे में नहीं रहे हैं, उन्हें भी अफीम पोस्त की खेती का लाइसेंस मिल सकता है, बशर्ते उनके नाम की सिफारिश अफीम की खेती करने वाले किसान द्वारा की गई हो।
Poppy Cultivation
अफीम क्या है?
अफीम एक लोकप्रिय मादक पदार्थ के रूप में प्रसिद्ध है। आमतौर पर लोग इसे हेरोइन का स्रोत मानते हैं। लेकिन देश में अफीम का इस्तेमाल वैध ड्रग व्यापार के लिए किया जाता है। बीज मॉर्फिन, लेटेक्स, कोडीन और पैनेंथ्रीन जैसे शक्तिशाली अल्कलॉइड का स्रोत हैं। इसके बीजों में कई रासायनिक तत्व पाए जाते हैं. जो नशीले पदार्थ हैं। फसल की गुणवत्ता के अनुसार अफीम की कीमत 8,000 से 1,00,000 प्रति किलो तक होती है।
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कैसा होता है अफीम का पौधा?
आमतौर पर पोस्त के पौधे की लंबाई 3-4 फीट होती है। यह हरे रेशे और चिकनी त्वचा वाला पौधा है। अफीम के पत्ते लंबे, डंठल रहित और गुड़हल के पत्तों की तरह होते हैं। वहीं इसके फूल सफेद और नीले रंग के होते हैं और कटोरी के आकार के होते हैं। जबकि अफीम का रंग काला होता है। इसका स्वाद बहुत कड़वा होता है। इसे हिंदी में अफीम, संस्कृत में अहिफेन, मराठी में अफूआ और अंग्रेजी में अफीम और पॉपी कहते हैं।

लाइसेंस प्राप्त करने की योग्यता क्या है?
- केंद्र सरकार द्वारा जारी लाइसेंस नोटिफिकेशन में सबसे पहले ऐसे किसानों को लाइसेंस दिया जाएगा जिन्होंने फसली वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान खेती की है. इसके साथ ही कुल क्षेत्रफल के 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों की जुताई की गई।
वर्ष 2020-21 के दौरान अफीम पोस्त की खेती करने वाले किसान पात्र होंगे। शर्त यह है कि उनकी मार्फिन की औसत उपज 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम नहीं होनी चाहिए। - राष्ट्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की देखरेख में फसल वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान किसान अपनी पूरी अफीम की फसल की जुताई कर रहे हैं, बशर्ते वे फसल वर्ष 2017-18 से खेती करने वाले हों। जोता नहीं।
- नई शर्तों में ऐसे किसान भी लाइसेंस प्राप्त कर सकते हैं, जिनकी फसल वर्ष 2020-21 में निस्तारण की अंतिम तिथि के बाद लाइसेंस नहीं देने के खिलाफ अपील स्वीकार की गई है।
- ऐसे किसान जिन्होंने फसल वर्ष 2020-21 या उसके बाद के किसी वर्ष में अफीम की खेती की है और जो बाद के वर्ष में लाइसेंस के लिए पात्र थे, लेकिन किसी कारण से स्वेच्छा से लाइसेंस प्राप्त नहीं किया है या जिन्होंने बाद के वर्षों में लाइसेंस प्राप्त नहीं किया है फसल वर्ष। उसके बाद किसी कारण से वास्तव में अफीम पोस्ता की खेती नहीं होती।
- अंतिम एवं विशेष शर्त यह है कि ऐसे कृषक अनुज्ञप्ति प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें फसल वर्ष 2020-21 के लिए कॉलम 11 में दिवंगत पात्र कृषक द्वारा नामित किया गया हो।
शर्तें क्या हैं?
केंद्र सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन में किसी भी किसान का लाइसेंस तब तक मंजूर नहीं किया जाएगा, जब तक वह इन शर्तों को पूरा नहीं करता है।
पहली शर्त-कि किसान ने फसल वर्ष 2020-21 के दौरान अफीम की खेती के लिए लाइसेंस प्राप्त वास्तविक क्षेत्र से 5 प्रतिशत से अधिक अनुमेय क्षेत्र में खेती नहीं की हो।
दूसरी शर्त- वह किसान कभी भी अफीम पोस्त की अवैध खेती न करे।
तीसरी शर्त- कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट 1985 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत किसी भी अपराध के लिए किसान को किसी भी सक्षम अदालत में आरोपी नहीं होना चाहिए था।
देश में कितने हेक्टेयर में अफीम की खेती होती है?
अफीम की खेती के लिए केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो द्वारा किसानों को लाइसेंस दिया जाता है। कानूनी तौर पर सिर्फ तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अफीम की खेती के हजारों लाइसेंस दिए गए हैं. वर्तमान में मध्यप्रदेश के मंदसौर व नीमच, राजस्थान के कोटा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा व प्रतापगढ़ तथा उत्तर प्रदेश के लखनऊ व बाराबंकी में साढ़े पांच हजार हेक्टेयर में अफीम की खेती का रकबा तय किया गया है. केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 के लिए अफीम नीति जारी कर दी है। जिसके तहत अफीम उत्पादक क्षेत्रों में किसानों को अफीम के पट्टे जारी किए गए हैं। वहीं अफीम की खेती करने वाले किसानों को सरकार ने कुछ सौगात भी दी है. इस वर्ष अफीम की खेती के लिए आवश्यक न्यूनतम मॉर्फिन का मानक 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखा गया है। बता दें कि पिछले साल देश के 39 हजार किसानों ने अफीम की खेती की थी।

मंदसौर पूरी दुनिया में मशहूर है
मंदसौर में कई तरह की खेती होती है, लेकिन यह अफीम की खेती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यह दुनिया में अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके अतिरिक्त स्लेट-पेंसिल उद्योग जिले का एक महत्वपूर्ण उद्योग है। मंदसौर की अफीम पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
अफीम कारोबारियों को मौत की सजा
दुनिया के अलग-अलग देशों में अफीम से बनी स्मैक, हेरोइन, ब्राउन शुगर जैसे नशीले पदार्थ बेचने या इस्तेमाल करने पर मौत की सजा दी जाती है. इसमें सबसे कड़ा कानून अरब देशों में है, जहां तस्करों को सीधे मौत के घाट उतार दिया जाता है। इसके अलावा उत्तर कोरिया, फिलीपींस, मलेशिया जैसे देशों में भी यही कानून है। चीन, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों में तस्करों और नशा करने वालों को लंबे समय तक पुनर्वास केंद्रों या जेलों में रखा जाता है। जबकि हमारे देश में ड्रग्स के मामले में एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत अलग-अलग सजा के प्रावधान हैं। इसमें धारा 15 के तहत एक साल, धारा 24 के तहत 10 साल और धारा 31ए के तहत एक लाख से दो लाख रुपये जुर्माना और मौत की सजा तक का प्रावधान है।