धान की यह नई किस्में किसानो को बना देगी मालामाल, जानिए इन नई वैरायटी के बारे में

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धान की यह नई किस्में किसानो को बना देगी मालामाल, जानिए इन नई वैरायटी के बारे में

धान की यह नई किस्में किसानो को बना देगी मालामाल, जानिए इन नई वैरायटी के बारे में। किसानों की आज की सबसे बड़ी समस्या है कम समय में अधिक उत्पादन कैसे लेना। वे ऐसी फसल उगाना चाहते हैं जो जल्दी पक जाए और अच्छी पैदावार भी दे। ऐसे में अगर आप भी धान की खेती करना चाहते हैं तो हम आपको बता रहे हैं 5 ऐसी किस्में जो आपके लिए बेहतर साबित हो सकती हैं।

कस्तूरी किस्म

कस्तूरी एक छोटे दाने वाली धान की किस्म है, जिसे इसके मीठे स्वाद और खुशबू के लिए जाना जाता है। पारंपरिक बासमती के नाम से जानी जाने वाली लंबे दाने वाली चावल को इसके नाजुक, पौष्टिक स्वाद और सुगंध के लिए सराहा जाता है। यह देश भर में उगाई जाती है। यह किस्म 115 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खासियत यह है कि यह ब्लाइट रोग प्रतिरोधी है। साथ ही इस किस्म की पैदावार क्षमता 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

सुगंधा किस्म

धान की इस किस्म को इसकी खुशबू के लिए जाना जाता है। इस चावल का इस्तेमाल मुख्य रूप से मसालेदार भोजन में किया जाता है। इसका सबसे अधिक इस्तेमाल मसाला खिचड़ी में होता है। वहीं इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा बिहार में की जाती है। यह किस्म 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खासियत यह है कि यह ब्लाइट रोग प्रतिरोधी है। साथ ही इस किस्म की पैदावार क्षमता 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

तरौरी बासमती किस्म

यह किस्म अपने मीठे स्वाद और खुशबू के लिए जानी जाती है। इस किस्म के दाने लंबे और पतले होते हैं। इस किस्म की खेती ज्यादातर हरियाणा में की जाती है। यह किस्म 135 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। साथ ही इस किस्म की पैदावार क्षमता 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

बासमती 385 किस्म

धान की इस किस्म को इसके लंबे दानों और खुशबू के लिए जाना जाता है। इस किस्म की खेती ज्यादातर पंजाब में की जाती है। यह किस्म 130 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। साथ ही इस किस्म की पैदावार क्षमता 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

बासमती 370 किस्म

बासमती चावल की 370 किस्म की बदौलत ही आज भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। यानी इस किस्म का सबसे ज्यादा निर्यात होता है। इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में की जाती है। यह किस्म 130 दिनों में तैयार हो जाती है। साथ ही इस किस्म की पैदावार क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

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