गियर बॉक्स फेल होने से पहले अलर्ट कर देगी डिवाइस,नही हो पाएगा हादसा,इंदौरी इंजीनियर्स की मेहनत ने किया कमाल,जाने इस बेहतर डिवाइस के बारे में ,,,,,
गियर बॉक्स फेल होने से पहले अलर्ट कर देगी डिवाइस,नही हो पाएगा हादसा,इंदौरी इंजीनियर्स की मेहनत ने किया कमाल,जाने इस बेहतर डिवाइस के बारे में ,,,,,
आईआईटी इंदौर और एक्रोपॉलिस कॉलेज के प्रोफेसर व स्टूडेंट की टीम ने एक खास तरह की डिवाइस डिजाइन की है। यह डिवाइस मेन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाली मशीनों के गियर बॉक्स फेल होने की सूचना 2 दिन पहले ही दे देगी। इस डिवाइस का नाम ‘प्रोग्नोस्टिक एंड डायग्नोस्टिक टेस्टिंग फॉर गियरबॉक्स फैलियर’ है। जिसे इंडस्ट्री फॉर पाइंट प्रोजेक्ट के तहत तैयार किया गया है। एक्रोपोलिस कॉलेज की टीम ने यह डिवाइस 60 लाख रुपए में तैयार की है। डिवाइस के लिए आईआईटी इंदौर ने 50 लाख रुपए के कंपोनेंट दिए हैं।
डिवाइस को तैयार करने वाली टीम के सदस्य प्रो. हेमंत मरमट ने बताया कि इस डिवाइस को मेन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री में फोर्थ रिजोल्यूशन के तहत तैयार किया है। रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले व्हीकल के गियर बॉक्स फैलियर बहुत कम होते हैं। लेकिन इससे उलट इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाली मशीनों के गियर बॉक्स कभी भी फेल हो जाते हैं। जिसके कारण कई घंटों तक या फिर एक से दो दिन तक मशीन गियर बॉक्स ठीक होने तक बंद हो जाती है। जिससे प्रोडक्शन लाइन रुक जाती है। लेकिन यह डिवाइस गियर बॉक्स फेल होने के 1.5 से 2 दिन पहले ही बता देगी की गियर बॉक्स फेल होने वाला है। जिससे इंडस्ट्री संचालक समय रहते गियर बॉक्स को सुधारने की तैयारी शुरू कर देंगे।
60 लाख रुपए में तैयार हुई डिवाइसमरमट ने बताया कि इस मशीन आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर डॉ. भूपेश लाड़ के मार्गदर्शन में तैयार किया है। डिवाइस के लिए आईआईटी इंदौर ने 50 लाख रुपए के कंपोनेंट फंड के रुप में दिए हैं। टीम ने इसमें एक्यूरेसी के लिए 6 से ज्यादा सेंसर इस्तेमाल किए हैं। आईआईटी इंदौर ने इसी डिवाइस के लिए एक निजी कंपनी से भी प्रपोजल मांगा था।
कंपनी ने सेंसर के इस्तेमाल किए बगैर 1 करोड़ रुपए का प्रपोजल भेजा था। जबकि हमने सेंसर का इस्तेमाल कर यह डिवाइस 60 लाख में ही तैयार कर दी।टेस्टिंग में पास हुई टेस्टरिंगकॉलेज टीम द्वारा तैयार डिवाइस का टेक्निकल नाम टेस्टरिंग है। जिसकी हाल ही में मल्टीनेशनल कंपनियों की टेस्टिंग में यह डिवाइस पास हुई है। डिवाइस मे एक्यूरेसी के लिए एसी व डीसी मोटर के साथ ही 6 सेंसर (एक्सलरेमीटर, अकास्टीक सेंसर, वाइब्रेशन सेंसर और थर्मल सेंसर जैसे अन्य 2 सेंसर) का इस्तेमाल किया गया है।
एप में कुंडली, QR कोड में पूरी डिटेलकॉलेज टीम ने इस डिवाइस के साथ ही एक ट्रेसेबिलिटी एप भी तैयार किया है। जो मेन्यूफेक्चरिंग लाइन में इस्तेमाल होने वाली मशीनों में लगने वाले छोटे से छोटे से कंपोनेंट की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध करा देते हैं। कंपोनेंट पर लगा क्यू-आर कोड स्कैन करते ही पता चल जाता है कि इसे किस कंपनी ने किस समय और कितने में बनाया है।
इसे कब खरीदा गया है और इसे किस इंजीनियर ने किस समय इंस्टाल किया है।
कॉलेज ने 3 लाख रुपए में यह ऐप तैयार किया है।डिवाइस के लिए लंदन की फैलोशिप मिलीइस मशीन को बनाने पर ब्रिटिश सरकार की रॉयल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग लंदन ने आईआईटी इंदौर को इंडस्ट्री एकेडमिया पार्टनरशिप प्रोग्राम के तहत 50 लाख रुपए की फैलोशिप दी है। इस फैलोशिप के लिए एक ग्रुप बना है जिसमें आईआईटी इंदौर, आईआईटी मुबंई, केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी लंदन और एक्रोपॉलिस शामिल है। यह ग्रुप स्मार्ट मेन्यूफेक्चरिंग के लिए काम कर रहा है। कॉलेज की टीम डिवाइस को बाजार में लाने की प्रक्रिया के लिए काम कर रही है। किसी स्टार्टअप की मदद से डिवाइस को पब्लिक डोमेन में लाया जाएगा।