Gooseberry Farming आंवले की ऐसी फायदेमंद खेती, जो एक बार लगाने पर जिंदगी भर देगी छप्पर फाड़ मुनाफा!

Gooseberry Farming साल भर मेहनत करने के बाद भी कई बार किसान उचित लाभ नहीं मिलने से मायूस हो जाते हैं। ऐसे में किसानों को ऐसी खेती करनी चाहिए जिसमें मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा हो। आंवला की फसल ऐसी ही फसलों में से एक है, जिसके पेड़ को एक बार लगाना होता है और फिर जीवन भर फल से मुनाफा कमाना पड़ता है। आंवले का पेड़ 55 से 60 साल तक फल देता है। पेड़ों के बीच की खाली जगह में कोई अन्य फसल भी उगाई जा सकती है। आइए जानते हैं खेती करने का सही तरीका और उन्नत किस्में।
Gooseberry Farming

आंवला के उपयोग और फायदे
आंवला के कई स्वास्थ्य लाभ हैं। आंवले का मुरब्बा, अचार, मुरब्बा, सब्जी और जैली बनाने में प्रयोग किया जाता है। आंवला एक आयुर्वेदिक औषधीय फल है। कहा जाता है कि आंवला सौ बीमारियों की दवा है। इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन-सी, विटामिन-ए, विटामिन-ई समेत कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसका स्वाद कसैला होता है। यह आंखों की रोशनी में सुधार करता है, भोजन के पाचन में मदद करता है, मधुमेह को नियंत्रण में रखता है, सूजन संबंधी बीमारियों में फायदेमंद है।
कृषि के लिए उपयुक्त मिट्टी
अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह पौधा कठोर और अधिक सहनशील होता है, इसलिए इसे सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। ध्यान रखें कि खेत में जल-जमाव नहीं होना चाहिए, जल-जमाव से पौधों के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है। भूमि का ph मान 6-8 के बीच होना चाहिए।
उपयुक्त जलवायु और तापमान
जलवायु में गर्मी और सर्दी के तापमान में ज्यादा अंतर नहीं होना चाहिए। प्रारंभ में पौधे को सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है लेकिन पूर्ण विकास के बाद पौधा 0-45 डिग्री तक तापमान सहन कर सकता है। गर्मी के अधिक तापमान में पौधे अच्छी तरह से बढ़ते हैं और गर्मी के मौसम में ही इसके पौधों पर फल लगने शुरू हो जाते हैं। जाड़े में पाला गिरना हानिकारक होता है, लेकिन सामान्य ठंड में पौधे अच्छे से बढ़ते हैं। पौधे के विकास के समय सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, न्यूनतम तापमान आंवले के पौधों के लिए अधिक समय तक हानिकारक होता है। आंवला की खेती समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है।
व्यावसायिक रूप से उन्नत किस्में
खेती के लिए आंवले की व्यावसायिक और उन्नत किस्म पूरे भारत में उगाई जाती है। फ्रांसिस, एन ए-4, नरेंद्र- 10, कृष्णा, चकैया, एन. ए. 9, बनारसी ये कुछ खास किस्में हैं।

पौधे की सिंचाई
प्रारम्भ में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई खेत में लगाने के बाद ही करें। गर्मियों में सप्ताह में एक बार और सर्दियों में 15-20 दिन में एक बार सिंचाई करें। बाद में जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है तो उसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके पेड़ को एक महीने में सींच देना चाहिए। लेकिन पेड़ पर फूल खिलने से पहले ही सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। इस सिंचाई के दौरान फूल गिरने लगते हैं जिससे पेड़ पर कम फल लगते हैं।
उर्वरक की मात्रा
उर्वरक एक सामान्य आवश्यकता है। पौधा विकसित होने के बाद मूल तने से 2 से 2.5 फुट की दूरी रखते हुए 1-2 फुट चौड़ा और एक से डेढ़ फुट गहरा घेरा बना लें। करीब 40 किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद, एक किलो नीम की खली, 100 ग्राम यूरिया, 120 ग्राम डी.ए.पी. और 100 ग्राम एम.ओ.पी. मात्रा में भरें। इसके बाद पेड़ों में सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण निराई गुड़ाई के द्वारा करना चाहिए। बीज और पौध लगाने के लगभग 20 से 25 दिन बाद खेत की पहली निराई करनी चाहिए। फिर जब भी पौधों के पास अधिक खरपतवार दिखाई दें तो उनकी पुन: निराई-गुड़ाई कर दें। आंवला के खेत में कुल 6-8 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इसके अलावा यदि किसी प्रकार की फसल उसके पेड़ों के बीच खाली पड़ी जमीन पर नहीं लगी हो तो खेत की जुताई कर लें। जिससे खेत में पैदा होने वाली सभी प्रकार की खरपतवार नष्ट हो जाती है।
पौधे की देखभाल
उचित और वैज्ञानिक देखभाल से एक पेड़ सालाना लगभग 100-120 किलोग्राम फल दे सकता है। देखभाल के दौरान पेड़ों की प्रसुप्ति से पहले मार्च के महीने में छंटाई कर लेनी चाहिए। फलों की तुड़ाई के बाद रोगग्रस्त शाखाओं को काट देना चाहिए। छंटाई के दौरान पेड़ों पर दिखने वाली सूखी शाखाओं को भी काटकर हटा देना चाहिए।

रोग और रोकथाम
काला धब्बा रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर उचित मात्रा में बोरेक्स का छिड़काव करें अथवा पौधों की जड़ों में उचित मात्रा में बोरेक्स दें। कुंगी रोग की रोकथाम के लिए पेड़ों पर इंडोफिल एम-45 का छिड़काव करें। फल फफूंदी रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एमपी-45, क्लीयर एवं शोर जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें। छाल खाने वाले कीट रोग की रोकथाम के लिए पौधों की शाखाओं के जोड़ पर दिखाई देने वाले छिद्रों में उचित मात्रा में डाइक्लोरवास डालकर मिट्टी से छिद्र को बंद कर दें।
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