Tea Cultivation इस तरह चाय की खेती देगी दोगुना मुनाफा, जानिए सही तकनीक!
Tea Cultivation भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है। चाय का उपयोग पेय के रूप में किया जाता है। चाय के अंदर कैफीन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है। इसके पौधों की पत्तियों और कलियों से चाय तैयार की जाती है। भारत के कई राज्यों में चाय की खेती की जाती है लेकिन सबसे खूबसूरत चाय के बागान असम में पाए जाते हैं। चाय सबसे अधिक खपत वाले पेय पदार्थों में से एक है, इसलिए बाजार में इसकी बहुत मांग है। ऐसे में चाय की खेती एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है। आइए जानते हैं चाय की खेती के बारे में।
Tea Cultivation
उपयुक्त मिट्टी
उचित जल निकास वाली भूमि चाय की खेती के लिए अच्छी होती है। अत्यधिक जलभराव से पौधे खराब हो जाते हैं। मिट्टी का थोड़ा अम्लीय होना जरूरी है। इसके लिए भूमि का पीएच मान 5.4 से 6 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में फास्फोरस, अमोनिया सल्फेट, पोटाश और सल्फर की मात्रा अच्छी होनी चाहिए।
जलवायु
चाय की खेती के लिए उष्ण कटिबंधीय जलवायु का होना आवश्यक है। गरमी के साथ बारिश होना लाजमी है। इसके पौधे शुष्क और आर्द्र मौसम में अच्छी तरह से बढ़ते हैं छायादार स्थान में इसकी खेती की जाती है। ज्यादा धूप पौधों को नुकसान पहुंचाती है। पौधों की वृद्धि के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। हालांकि पौधे अधिकतम 35 और न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को सहन कर सकते हैं।
चाय की किस्में
चाय की कई किस्में हैं, जिनमें चीनी चाय, असमिया चाय (दुनिया भर में सबसे अच्छी किस्म मानी जाती है), कांगड़ा चाय (हिमाचल प्रदेश में उत्पादित, जिसका उपयोग ग्रीन टी पाउडर बनाने के लिए किया जाता है), व्हाइट पेओनी, सिल्वर नीडल व्हाइट आदि शामिल हैं।
चाय के प्रकार
चाय मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है हरी, सफेद, काली। ब्लैक टी दानेदार रूप में होती है जिससे कई तरह की चाय बनाई जा सकती है। सफेद चाय का स्वाद मीठा होता है। ग्रीन टी, जो कच्ची पत्तियों से तैयार की जाती है। इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं।
मैदान की तैयारी
चाय के पौधे ढालू भूमि में उगाए जाते हैं, इसलिए भारत के पर्वतीय भागों में इसकी खेती अधिकतर की जाती है। ढालू भूमि में इसके पौधे लगाने के लिए गड्ढे तैयार किए जाते हैं। इन गड्ढों के बीच तीन फीट की दूरी रखनी चाहिए। गड्ढों में जैविक व रासायनिक खाद डालें।
पौधे की तैयारी
चाय के पौधे बीजों या कलमों से तैयार किए जाते हैं। इसके बीजों को उपचारित कर उचित मात्रा में जैविक एवं रासायनिक खाद डालकर तैयार मिट्टी में 5 से 7 सेमी की दूरी पर नर्सरी में रोपित किया जाता है। पेन से पौधा तैयार करने के लिए कटिंग की लंबाई करीब 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसे गर्म पानी में डालकर उबालें और फिर इसे सूखने के बाद पॉलीथिन में मिट्टी डालकर इसमें लगा दें। या इसकी कटिंग को रूटीन हॉर्मोन में डुबोकर नम मिट्टी में गाड़ दें।
बुवाई का सही समय
पौधे लगाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और नवंबर का महीना है।
पौधे की सिंचाई
इसकी खेती पर्याप्त वर्षा वाले स्थान पर की जाती है, इसलिए अधिकांश सिंचाई वर्षा द्वारा की जाती है। वर्षा कम होने पर इसके पौधों की फव्वारा विधि से सिंचाई करनी चाहिए। जब तापमान अधिक हो और वर्षा न हो तो इसके पौधों की सिंचाई प्रतिदिन हल्की करनी चाहिए।
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उर्वरक की मात्रा
गड्ढे तैयार करते समय लगभग 15 किग्रा पुरानी गोबर की खाद और 90 से 120 किग्रा नाइट्रोजन, 90 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट, 90 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर रासायनिक खाद के रूप में डाला जाता है। खाद की यह मात्रा पौधों को काटने के बाद साल में तीन बार देनी चाहिए। इसके अलावा यदि खेत में गंधक की कमी हो तो जिप्सम का छिड़काव शुरूआत में ही कर देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
इसके लिए पौधों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद गोडाई करें। इसके बाद बीच-बीच में साल में तीन से चार बार गोड़ाई करें।चाय की खेती में निराई गुड़ाई द्वारा प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण किया जाता है। इसके लिए इसके पौधों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पहली गुड़ाई करें। इसके पौधों को शुरूआती वर्ष में अधिक खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है। लेकिन जब इसका पौधा पूर्ण रूप ले लेता है तो इसके पौधे की साल में तीन से चार निराई काफी होती है।
पौधे की देखभाल
चाय के पौधों की लंबाई काफी बढ़ सकती है, इसके लिए पौधों की बीच-बीच में कटाई करनी चाहिए।
पत्तियों की तुड़ाई
खेत में रोपाई के करीब एक साल बाद ही चाय के पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके पत्ते साल में तीन बार काटे जाते हैं। मार्च में पहली बार पत्तियों की कटाई की जाती है। जाड़े के मौसम में पौधे बढ़ना बंद कर देते हैं, इसलिए अक्टूबर-नवंबर में तीसरी कटाई के बाद अप्रैल के महीने में इसके पौधे फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
रोग प्रतिरक्षण
चाय के पौधों में लाल कीट और शैवाल, ब्लिस्टर ब्लाइट, ब्लैक रोट सबसे आम कीट रोग हैं। इसके अलावा भूरा झुलसा, गुलाबी रोग, ताज सड़न, काली जड़ सड़न, अंखुवा धब्बा, चारकोल सड़न, जड़ सड़न और भूरी जड़ सड़न भी देखी जाती है। इसके लिए किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
पैदावार
इसकी उपज 600 से 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होती है। वे एक हेक्टेयर चाय की जमीन से आसानी से 1.5 से 2 लाख तक कमा सकते हैं। इसकी फसल में एक बार लगाने के बाद पौधों की देखभाल में सामान्य खर्चा आता है। लेकिन हर बार जब उपज बढ़ती है तो आय में भी वृद्धि होती है।