Cultivation of Ragi 4000 साल पुरानी ऐसी फसल की खेती आज भी आसान और लाभदायक!

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Cultivation of Ragi

Cultivation of Ragi भारत ने कृषि के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। फसलों की नई किस्मों और नए तरीकों पर गौर किया जा रहा है। ऐसे में कुछ ऐसी फसलें हैं, जो काफी पुरानी और लाभदायक हैं। जिनमें से एक रागी है, यह रागी, जिसे फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा आदि के नाम से जानी जाने वाली पहली अनाज की फसल है, जिसे लगभग 4 हजार साल पहले भारत लाया गया था। आइए जानते हैं कैसे करें रागी की खेती जो है लाभदायक।

Cultivation of Ragi

रागी की विशेषता- शुष्क मौसम में उगाई जा सकती है, गंभीर सूखे को सहन कर सकती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है। यह एक छोटी अवधि की फसल है, जिसे 65 दिनों में काटा जा सकता है। सभी बाजरा में, यह सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली फसल है। प्रोटीन और मिनरल्स की मात्रा अधिक होती है। साथ ही एक महत्वपूर्ण अमीनो एसिड कैल्शियम (344 मिलीग्राम) और पोटेशियम (408 मिलीग्राम) से भरपूर। कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए यह बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें लौह तत्व की मात्रा अधिक होती है। Cultivation of Ragi

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उपयुक्त मिट्टी- कई प्रकार की उपजाऊ और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी की खेती की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मिट्टी अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। भूमि में जल भराव नहीं होना चाहिए। भूमि का पीएच मान 5.5 से 8 के बीच होना चाहिए।

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खेत की तैयारी- खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें। पुरानी गोबर की खाद को जैविक खाद के रूप में डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर से खेत की 2-3 तिरछी जुताई करें। खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी का छिड़काव करें। फिर दोबारा जुताई करें।

उन्नत किस्में- बाजार में रागी की कई किस्में हैं। जिन्हें कम समय में अधिक उपज देने के लिए तैयार किया गया है। जेएनआर 852, जीपीयू 45, चिल्का, जेएनआर 1008, पीईएस 400, वीएल 149, आरएच 374 उन्नत किस्में हैं। इनके अलावा भी कई वैरायटी हैं।

बीज की मात्रा एवं उपचार- रोपाई के लिए बीज की मात्रा बोने की विधि पर निर्भर करती है। ड्रिल विधि से रोपाई करने पर 10-12 किग्रा बीज प्रति हे0 लगता है। छिड़काव विधि से रोपाई करते समय करीब 15 किलो बीज लगते हैं। बीजों को उपचारित करने के लिए थीरम, बैविस्टिन या कैप्टान औषधि का प्रयोग करें। Cultivation of Ragi

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बीज बोने की विधि और समय
बीजों का रोपण छिड़काव और ड्रिल दोनों तरीकों से किया जाता है। छिड़काव विधि में किसान समतल भूमि में इसके बीजों का छिड़काव करते हैं। उसके बाद बीजों को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर के पीछे हल्की पट्टी बांधकर खेत की 2 बार हल्की जुताई की जाती है। इससे बीज मिट्टी में करीब 3 सेमी नीचे चला जाता है। बीजों को ड्रिल विधि द्वारा मशीनों की सहायता से कतारों में बोया जाता है। कतारों में इसकी रोपाई के समय प्रत्येक कतार के बीच लगभग एक फुट की दूरी रखनी चाहिए तथा कतारों में बोए जाने वाले बीजों के बीच 15 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।

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बुवाई का समय- पौधों की रोपाई मई के अंत से जून तक की जाती है। इसके अलावा कई जगह ऐसी भी हैं जहां जून के बाद भी रोपण किया जाता है और कुछ इसे जायद के मौसम में भी उगाते हैं। Cultivation of Ragi

पौधों की सिंचाई– सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि खेती बरसात के मौसम में की जाती है। यदि समय पर वर्षा न हो तो पौधों की पहली सिंचाई रोपाई के लगभग एक से डेढ़ महीने बाद करें। फिर जब पौधे पर फूल और दाने आने लगें तो उन्हें अधिक नमी की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार सिंचाई करें।

खाद की मात्रा- खाद की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। खेत की तैयारी के समय लगभग 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद खेत में डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। इसके अलावा डेढ़ से दो बोरी एनपीके प्रति हेक्टेयर रासायनिक खाद के रूप में छिड़काव कर खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।Cultivation of Ragi

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खरपतवार नियंत्रण- बीज बोने से पहले उचित मात्रा में आइसोप्रोट्यूरोन या ऑक्सीफ्लोराफेन का छिड़काव करें। जबकि पौधों की निराई-गुड़ाई कर प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण किया जाता है। पौधों की रोपाई के लगभग 20-22 दिन बाद पहली गुड़ाई करें। प्राकृतिक खरपतवार नियंत्रण के लिए दो गुड़ाई पर्याप्त होती है।

कटाई- बीज रोपाई के लगभग 110 -120 दिनों के बाद पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके बाद इसके सिरों को पौधों से काटकर अलग कर लें। अनाज के अच्छी तरह सूख जाने के बाद मशीन की सहायता से दानों को अलग कर बोरियों में भर लें। Cultivation of Ragi

उपज और लाभ- रागी की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज लगभग 25 क्विंटल होती है। जिसका बाजार भाव करीब 2700 रुपए प्रति क्विंटल है। इस हिसाब से किसान एक बार में एक हेक्टेयर से 60 हजार रुपए तक की कमाई कर लेता है।

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