Jackfruit Cultivation इसकी खेती कर चमकेगी किसानों की किस्मत, एक बार लगाने पर सालों-साल होगी कमाई
Jackfruit Cultivation कटहल को दुनिया का सबसे बड़ा फल कहा गया है। कटहल के पेड़ को तैयार होने में 5 से 6 साल का समय लगता है, लेकिन जब इसके पौधे बड़े पेड़ बन जाते हैं तो कई सालों तक फल देते हैं। कटहल चाहे कच्चा हो या पका, दोनों ही तरह से उपयोगी माना जाता है। कटहल हृदय रोग, पेट के कैंसर और बवासीर की समस्या में बहुत फायदेमंद साबित होता है। इस कारण इसकी मांग बाजार में अधिक है। इसकी खेती से किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलता है। कटहल की खेती में न तो ज्यादा मेहनत लगती है और न ही इसके लिए ज्यादा पैसे की जरूरत होती है. इस लेख में हम आपको कटहल की खेती के बारे में बताएंगे।
Jackfruit Cultivation
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कटहल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
6 से 7 के पीएच के साथ अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। काली और चिकनी मिट्टी में भी खेती संभव है, लेकिन जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिए।
कटहल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
कटहल की खेती शुष्क और समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जा सकती है। गर्मी और बारिश पौधों की वृद्धि के लिए अच्छे होते हैं, लेकिन अत्यधिक ठंड में पौधों की वृद्धि रुक जाती है। कटहल की खेती के लिए शुष्क एवं नम वातावरण का होना आवश्यक है।
कटहल की बुआई का समय
कटहल की खेती के लिए बारिश का मौसम (जुलाई से सितंबर) सबसे अच्छा माना जाता है।
कटहल के बीज या अंकुर
बीज से तैयार कटहल का पेड़ 6 से 7 साल बाद उत्पादन देता है, जबकि ग्राफ्टिंग विधि से तैयार पौधे 4 साल में ही फल देना शुरू कर देते हैं। कटहल की उन्नत किस्मों के पौधे आप नजदीकी नर्सरी में जाकर ले सकते हैं। या आप पके हुए कटहल के बीजों का उपयोग कर सकते हैं।
कटहल के खेत की तैयारी
कटहल लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लें। फिर तख्ती लगाकर खेत को समतल कर लें। इसके बाद जमीन में 10 से 12 मीटर की दूरी पर 1 मीटर व्यास और 1 मीटर गहराई के गड्ढे बना लें। इन गड्ढों में 20 से 25 किलो गोबर की खाद, कम्पोस्ट, 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 म्यूरेट ऑफ पोटाश, 1 किलो नीम की खली और 10 ग्राम थायमेट मिलाएं।
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कटहल की फसल की सिंचाई
कटहल की खेती में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है. केवल शुरुआत में ही पौधों को पानी देना होता है। पहले कुछ वर्षों तक गर्मी के मौसम में हर हफ्ते और सर्दियों के मौसम में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
कटहल की फसल में खरपतवार एवं रोग नियंत्रण
कटहल के पौधों के आसपास निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकालते रहें। कटहल में रोग कम देखने को मिलते हैं. लेकिन कभी-कभी फल सड़न रोग, कीट रोग, गुलाबी धब्बा, मिली बैग, तना छेदक रोग हो जाता है। फल सड़न रोकने के लिए डाइथेन एम-45 को 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोलकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए। कीट रोग के लिए मैलाथियान का 0.5 प्रतिशत छिड़काव करें। गुलाबी धब्बे के लिए पौधों पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर का छिड़काव और मीली बैग से बचाव के लिए 3 मिली. एंडोसल्फान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यदि पौधे के तने या शाखा पर छेद हो तो उसे मिट्टी के तेल में भीगी रुई से भर दें और छेद के मुहाने को मिट्टी से ढक दें।
कटहल उत्पादन से लाभ
कटहल का पेड़ रोपाई के तीन से चार साल बाद ही फल देने लगता है। करीब 12 साल तक अच्छी मात्रा में फल देता है। एक हेक्टेयर में 150 पौधे लगाए जा सकते हैं। एक हेक्टेयर में कटहल की खेती करने में 40000 हजार का खर्च आता है। एक पौधे से साल में 500 से 1000 किलो तक उपज मिलती है। इस तरह एक साल की उपज से 3 से 4 लाख आसानी से कमा लेते हैं। फलों का उत्पादन बढ़ने से मुनाफा भी बढ़ता है। इसके अलावा कटहल का पेड़ लंबा और छायादार होता है। पेड़ की छाया में इलायची, काली मिर्च आदि चीजों की खेती कर मुनाफा कमाया जा सकता है। कटहल से फल पैदा करने के बाद इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर बनाने में किया जा सकता है।